प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार, 22 सितंबर 2024 को न्यूयॉर्क में फिलिस्तीनी प्रधानमंत्री महमूद अब्बास से मुलाकात की। यह मुलाकात संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र के दौरान हुई। इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने फिलिस्तीनी जनता के प्रति भारत के “अडिग समर्थन” की प्रतिबद्धता दोहराई और गाजा में जारी मानवता संकट पर गहरी चिंता व्यक्त की।
इस मुलाकात के कुछ ही दिन पहले भारत ने संयुक्त राष्ट्र में उस प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया था, जिसमें इज़राइल से अगले 12 महीनों के भीतर कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्रों को खाली करने की मांग की गई थी। भारत के इस निर्णय के पीछे इज़राइल पर प्रतिबंध और हथियार निर्यात पर अंकुश की चिंताएं बताई जा रही हैं। भारत ने अपने मतदान को यह कहकर स्पष्ट किया कि वह इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच “पुलों का निर्माण” करने के पक्ष में है, न कि तनाव बढ़ाने के।
गाजा संकट और मानवता की पुकार
रविवार को हुई इस उच्च-स्तरीय बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “मैं गाजा में जारी मानवीय संकट और क्षेत्र में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति को लेकर अत्यधिक चिंतित हूँ।” उन्होंने फिलिस्तीन के प्रति भारत की निरंतर मानवीय सहायता की प्रतिबद्धता भी दोहराई। सरकारी बयान के अनुसार, प्रधानमंत्री ने इस संकट के समाधान के लिए दो-राज्य समाधान की वकालत की और इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष विराम, बंधकों की रिहाई, और कूटनीति और संवाद के माध्यम से समाधान की अपील की।
मोदी सरकार के इस दृष्टिकोण को फिलिस्तीन के साथ दीर्घकालिक संबंधों और भारत की स्थिर विदेश नीति के अनुरूप माना जा रहा है। भारत हमेशा से ही फिलिस्तीनी मुद्दे पर दो-राज्य समाधान का समर्थन करता आया है, जिसमें स्वतंत्र और संप्रभु फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना की बात कही जाती है।
इज़राइली प्रधानमंत्री से नहीं होगी मुलाकात
प्रधानमंत्री मोदी इस बार संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र में इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से मुलाकात नहीं करेंगे। नेतन्याहू 24 सितंबर को न्यूयॉर्क पहुँचने वाले हैं, जब मोदी भारत लौट चुके होंगे। यह कूटनीतिक विकास ध्यान आकर्षित कर रहा है, क्योंकि इज़राइल और भारत के बीच मजबूत आर्थिक और रक्षा संबंध होने के बावजूद, इस बार दोनों नेताओं के बीच कोई द्विपक्षीय बैठक नहीं हो रही है।
नेपाल और कुवैत के नेताओं से भी हुई बातचीत
प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को नेपाली प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली से भी मुलाकात की। इस बैठक में दोनों नेताओं ने जलविद्युत सहयोग, जन-से-जन संपर्क, और कनेक्टिविटी बढ़ाने पर चर्चा की। भारत और नेपाल के बीच वर्षों पुराने संबंधों की दिशा में इस बैठक को एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जिसमें खासकर ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग को प्रमुखता दी गई।
इसके अलावा, मोदी ने पहली बार कुवैत के क्राउन प्रिंस, शेख सबाह खालिद अल-हमद अल-मुबारक अल-सबाह से भी मुलाकात की। दोनों देशों के बीच ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा पर संतोषजनक चर्चा हुई। भारत और कुवैत के बीच व्यापारिक संबंध मजबूत होते जा रहे हैं, और यह बैठक उसी का प्रमाण है।
यह भी पढ़ें: वैश्विक स्व-सेवा टिकट मशीनें बाजार: अवसर और चुनौतियाँ 2024
भारतीय प्रवासी समुदाय की सुरक्षा पर चर्चा
कुवैत में रहने वाले भारतीय प्रवासी समुदाय की सुरक्षा और कल्याण पर भी इस द्विपक्षीय बैठक में गहन चर्चा हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय समुदाय की भलाई सुनिश्चित करने के लिए कुवैत के क्राउन प्रिंस का आभार व्यक्त किया। यह उल्लेखनीय है कि कुवैत में भारतीय समुदाय सबसे बड़ा प्रवासी समूह है और वहां उनके जीवन और सुरक्षा पर ध्यान देना दोनों देशों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।
इस साल जनवरी में कुवैत में एक श्रमिक आवासीय सुविधा में आग लगने से 45 भारतीय प्रवासियों की मौत हो गई थी, जिसके बाद उनके परिजनों ने सरकार से प्रवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए और कदम उठाने की अपील की थी। प्रधानमंत्री मोदी ने इस मुद्दे पर कुवैत के नेतृत्व से बातचीत की और इस संबंध में आवश्यक कदम उठाने पर जोर दिया।
संयुक्त राष्ट्र और भारत की विदेश नीति का नया अध्याय
प्रधानमंत्री मोदी की यह अमेरिका यात्रा वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती भूमिका का एक और संकेत है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र में प्रधानमंत्री की मौजूदगी और विभिन्न देशों के नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठकें, भारत की विदेश नीति को और मजबूत करती हैं। यह दौरा उन मुद्दों को केंद्र में लाने का प्रयास है, जो न केवल भारत बल्कि वैश्विक समुदाय के लिए भी महत्वपूर्ण हैं, जैसे गाजा में मानवीय संकट, इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष, और दक्षिण एशिया में स्थिरता।
इस दौरे के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी ने यह संदेश दिया है कि भारत विश्व मंच पर एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है और वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए उसकी भूमिका महत्वपूर्ण है। न्यूयॉर्क में हुई यह बैठकें न केवल भारत की विदेश नीति की दिशा को स्पष्ट करती हैं, बल्कि भारत की दीर्घकालिक कूटनीति और संबंधों को और मजबूत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती हैं।
स्रोत: द हिंदू ब्यूरो, सरकारी बयान