नई दिल्ली: गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार की हत्या के मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई के फैसले पर की गई टिप्पणियों को हटाने की मांग की गई थी।
गुजरात सरकार ने याचिका में दावा किया था कि अदालत ने अपनी टिप्पणियों में राज्य की ‘सहयोग’ की भूमिका को लेकर जो आरोप लगाए हैं, वह “रिकॉर्ड के खिलाफ” हैं और “पूर्वाग्रही” हैं। सरकार का तर्क था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश में ‘सहयोग और मिलीभगत’ से संबंधित टिप्पणियों को हटाया जाना चाहिए।
हालांकि, जस्टिस बीवी नागरथ्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने इस पर असहमति जताई और याचिका को खारिज करते हुए कहा कि रिकॉर्ड में ऐसी कोई गलती नहीं है जिसे सुधारने की जरूरत हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हम याचिका के कागजात और आदेश को ध्यान से देखने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि आदेश में कोई स्पष्ट गलती नहीं है और पुनर्विचार याचिका में कोई दम नहीं है।”
इससे पहले जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने दो दोषियों, राधेश्याम भगवंदास और राजूभाई बबुलाल की अंतरिम जमानत याचिका को भी खारिज कर दिया था। दोषियों ने अदालत के सामने तर्क दिया था कि समयपूर्व रिहाई की नीति पर राज्य की ओर से अलग-अलग विचार सामने आए थे, लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का जनवरी 2024 का आदेश
जनवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार द्वारा 11 दोषियों को ‘अच्छे व्यवहार’ के आधार पर दी गई रिहाई के फैसले को पलटते हुए कहा था कि राज्य इस प्रकार के मामलों में सक्षम नहीं है। अदालत ने कहा था कि दोषियों को फिर से जेल जाना होगा। इस फैसले ने पूरे देश में जनता की कड़ी प्रतिक्रिया को जन्म दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि यह रिहाई का आदेश “बिना विवेक का प्रयोग किए” दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि दोषियों को केवल उसी राज्य द्वारा रिहा किया जा सकता है जिसने उन्हें दोषी ठहराया हो, जो इस मामले में महाराष्ट्र था। गुजरात सरकार ने 1992 की एक पुरानी नीति के तहत दोषियों को रिहा किया था, जबकि 2014 के कानून के अनुसार, गंभीर अपराधों में दोषी पाए गए लोगों की रिहाई पर रोक है।
दोषियों का स्वागत
रिहा होने के बाद दोषियों का स्वागत करने के दृश्य भी देशभर में चर्चा का विषय बन गए थे। दोषियों को फूलों की माला पहनाई गई और मिठाईयां बांटी गईं। इन दोषियों को बीजेपी के एक सांसद और विधायक के साथ मंच साझा करते भी देखा गया था।
बिलकिस बानो उस समय 21 वर्ष की थीं और पांच महीने की गर्भवती थीं जब उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। उनकी तीन वर्षीय बेटी भी उन सात परिवारजनों में शामिल थी जिनकी हत्या कर दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए इस आदेश ने एक बार फिर से इस मामले को सुर्खियों में ला दिया है।