### फ्रांस बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ ICC गिरफ्तारी वारंट को लागू नहीं कर सकता

हाल ही में, फ्रांस में इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) द्वारा जारी गिरफ्तारी वारंट की चर्चा छिड़ गई है। यह वारंट नेतन्याहू पर युद्ध अपराधों का आरोप लगाते हुए जारी किया गया है, जिसमें इजरायल के गाजा में सैनिक कार्रवाई और वहां की नागरिकों पर होने वाले हमलों को शामिल किया गया है। हालांकि लीगल और कूटनीतिक दृष्टिकोन से, फ्रांस के लिए इस वारंट को लागू करना बेहद कठिन होगा।

इसकी पृष्ठभूमि में, यह जानना महत्वपूर्ण है कि ICC एक अंतरराष्ट्रीय अदालत है, जिसका गठन 2002 में हुआ था और यह युद्ध अपराध, मानवता के खिलाफ अपराध, और जनसंहार जैसे गंभीर अपराधों की सुनवाई करती है। नेतन्याहू पर जो आरोप लगाए जा रहे हैं, वे इजरायल-फلسطीन संघर्ष के लम्बे इतिहास से जुड़ते हैं, जिसमें कई संघर्ष और ढेर सारे मानवाधिकार उल्लंघन शामिल हैं।

फ्रांस का वैश्विक कूटनीतिक दृष्टिकोण काफी जटिल है। फ्रांसीसी सरकार ने हमेशा अरब-इसराइल मुद्दे में संतुलित रुख अपनाने की कोशिश की है। फ्रांस की नीति में, दोनों पक्षों के बीच बातचीत और स्थायी शांति स्थापित करना मुख्य प्राथमिकता रही है। ऐसे में, नेतन्याहू के खिलाफ ICC के वारंट को लागू करना न केवल कानूनी तौर पर कठिन होगा, बल्कि इससे फ्रांस की विदेश नीति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

इसके साथ ही, मानवाधिकार संगठनों और विपक्षी राजनीतिज्ञों ने फ्रांसीसी सरकार पर आरोप लगाया है कि वह एक ‘यू-टर्न’ ले रही है ताकि वह इजराइल-लेबनान संघर्ष पर सहमति बना सके। इन आरोपों का संबंध हाल ही में इजराइल और लेबनान के बीच हुआ संघर्ष के विराम से है, जिसमें फ्रांस ने मध्यस्थता करने का प्रयास किया था।

फ्रांसीसी सरकार के लिए यह स्थिति अत्यंत संवेदनशील है, क्योंकि यदि वह ICC के वारंट को लागू करने का प्रयास करती है, तो इससे न केवल इजरायल के साथ उसके संबंधों में कटौती हो सकती है, बल्कि अन्य अरब देशों के साथ भी उसके कूटनीतिक स्वरूप में कठिनाइयों का संज्ञान लेना होगा।

इस प्रकार, फ्रांस के लिए यह भावना प्राप्त करना आवश्यक है कि वह दोनों पक्षों के बीच बातचीत की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है, बजाय इसके कि वह किसी एक नेता के खिलाफ प्रणालीगत कार्रवाई करे। नेतन्याहू के खिलाफ ICC गिरफ्तारी वारंट का सवाल न केवल कानूनी रूप से जटिल है, बल्कि इसके सामाजिक और कूटनीतिक प्रभाव भी गहरे होंगे।

इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि फ्रांस ने अपने कूटनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए इस वारंट को लागू करने के कोई भी प्रयास से दूर रहने का निर्णय लिया है।