### क्यों पोर्टफोलियो फिर से संतुलन बनाना ज़ेन नहीं है
पोर्टफोलियो प्रबंधन एक ऐसी कला है जिसमें जोखिम और लाभ का सही संतुलन स्थापित करना होता है। पोर्टफोलियो फिर से संतुलन (Rebalancing) एक सामान्य प्रथा है, जो निवेशकों द्वारा अपनाई जाती है ताकि उन्हें अपने संपत्तियों के आवंटन को लगातार बनाए रखने में मदद मिल सके। लेकिन क्या यह प्रथा वास्तव में संतुलन बनाने का सही तरीका है? क्या इसे एक ज़ेन विधि के रूप में देखा जा सकता है? आइये, इस विषय पर एक गहरी नजर डालते हैं।
### पोर्टफोलियो संतुलन की आवश्यकता
जब हम पोर्टफोलियो की बात करते हैं, तो हमें यह समझना आवश्यक है कि बाजार में विकास और उतार-चढ़ाव होते रहते हैं। ऐसे में जब एक विशेष संपत्ति का हिस्सा बढ़ जाता है, तो जोखिम बढ़ जाता है। सामान्यतः, निवेशकों को इस स्थिति में अपने पोर्टफोलियो को फिर से संतुलित करना चाहिए, ताकि उनकी जोखिम प्रोफाइल स्थिर रहे। उदाहरण के लिए, यदि आपके पोर्टफोलियो में स्टॉक्स का हिस्सा 60% से बढ़कर 80% हो गया है, तो आप शायद इसे वापस 60% पर लाना चाहेंगे।
### ऐतिहासिक संदर्भ
यदि हम इतिहास की ओर नजर डालें, तो हमें यह पता चलता है कि कई प्रमुख निवेशकों ने अपने पोर्टफोलियो को बार-बार संतुलित करने की आवश्यकता को नकारा किया है। उनमें से एक बफ़ेट का आदर्श है—”अपने पोर्टफोलियो को लंबे समय तक भूल जाइए।” वह मानते हैं कि अच्छे प्रतिष्ठान के स्टॉक्स को लंबे समय तक रखना अधिक लाभदायक होता है। इसी प्रकार, फाइनेंशियल थ्योरी जैसे कि मॉडर्न पोर्टफोलियो थ्योरी भी सुझाव देती है कि लंबी अवधि में ध्यान केंद्रित करना अधिक महत्वपूर्ण है।
### लाभ और हानि
हालांकि फंडामेंटल्स के अनुसार संतुलन बनाना आवश्यक लगता है, लेकिन क्या बार-बार संतुलन बनाना लाभदायक है? कई अध्ययन यह दर्शाते हैं कि लगातार संतुलित करने से कम लाभ होता है और अनुशासनहीनता को बढ़ावा मिल सकता है। यह कई निवेशकों के लिए महंगा पड़ सकता है, क्योंकि उन्हें हर बार लेनदेन शुल्क और टैक्स का सामना करना पड़ता है।
### निचोड़
अंत में, जबकि पोर्टफोलियो फिर से संतुलन बनाना एक स्वीकार्य प्रथा हो सकती है, यह हमेशा बुद्धिमानी नहीं होती। किसी भी निवेशक को यह समझना कभी-कभी और जरुरत से ज्यादा बार संतुलन बनाने से बेहतर होता है कि वे अपनी पसंदीदा संपत्तियों में विश्वास रखें और दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाएं। एक ज़ेन दृष्टिकोण सेवा में हो सकता है, लेकिन धैर्य और विवेक से काम लेना अधिक मूल्यवान साबित होता है। इसलिये, पोर्टफोलियो प्रबंधन में हमेशा स्थिरता और दीर्घकालिकता की सोच ही उचित होगी।